पारसमणि द्वितीय एपिसोड
An ऑटोबायोग्राफी Of शंकरलालबुनकर
पारसमणि एन ऑटोबॉयग्राफी ऑफ़ माईन के प्रथम एपिसोड में आप सभी से मिले प्रतिसाद एवं आशीर्वादके लिए साल्वी समाज ट्रस्ट की तरफ से धन्यवाद।
आज नए एपिसोडमें आपके समक्ष ऐसे विलक्षण व्यक्तित्व से आपका परिचय करवाने वाले हे जिन्होंने अपने जीवनमें भीषण आर्थिक संकट के साथ संघर्षकी सारी पराकाष्ठा को पार किया हे, वह हे श्रीमानशंकरलालजी साल्वी, गांव झाड़ोल।
आपश्री की जीवनी अत्यंत ही उतर चढाव के साथ खूब भावुक करने वाली हे, बचपन का जीवन यापन हो या शिक्षक जैसी गरिमापूर्ण नियुक्ति के बाद निष्काशन, फिर दिहाड़ी मज़दूरी से मिल मज़दूर तक का सफर, वहसे माँ भारती की सेवा भारत पाकिस्तान युद्धमें वीरयोद्धा के रूप में सरहद पर पराक्रम और आखिरमें अपने समाजके द्वितीय पोस्टमास्टर की जॉब से सेवा निवृत।
तो चलिए मित्रो आज उनसे परिचय करते हे उन्ही के द्वारा सब्दो में पिरोई गयी ऑटोबायोग्राफी
- नाम:- श्रीमानशंकरलालजीबुनकर
- जन्मतिथि:- 15 मई 1944
- शिक्षा / योग्यता:- हायरसेकेण्डरी
- स्थाईनिवासी:- गाँव-झाडोल, त•सराडा, जिला-उदयपुर
- हालमुकाम:- सेक्टर -14, उदयपुर
- द्वितीयनियुक्तिएवंविभाग:- भारतीयथलसेना 63 इंजिनियररेजिमेंट, 11अगस्त 1965
- द्वितीयनियुक्ति:- पोस्टमास्टर,भारतीयडाकविभागसन् 1972
"सफर जिन्दगीका"
"मै और मेरा जीवन – जीवन एक संघर्ष – संघर्ष से सफलता"
- नाम :- श्रीमानशंकरलालजी सालवी (बुनकर)
- पिताजी का नाम :- स्व. श्रीगंगारामजी बुनकर,
- माताजी का नाम :- स्व. श्रीमतीनाथीबाईं बुनकर,
- पत्नीका नाम :- श्रीमतीरतनदेवी बुनकर,
- पुत्र :- कैलाशचन्द्र, पुत्रवधु :- श्रीमती रंजनादेवी,
- पुत्रीया :- श्रीमती सवितादेवी, श्रीमती ललितादेवी,
- पोत्री :- भव्या, पोत्र- प्रवण
मेरा जन्म उदयपुर जिले के सराडा तहसील के झाडोल गाँवमें 15 मई 1944 को साधारण सालवी (बुनकर) परिवार में पूजनीय माताजी श्रीमती नाथीबाईं एवं पिताजी श्रीमानगंगारामजी बुनकर (सोनार्थी) के घर पर हुआ। मेरे परिवारमें उस समय हम कुल आठ सदस्य थे। जिनमें मेरी माताजी हम दो भाईव पाँच बहनें थीं। मेरे पिताजी का स्वर्गवास मेरे बाल्यावस्था जब मैं दोबर्ष काथा तब ही हो गया था।
मेरे परिवार की आर्थिक स्थिति बहुत खराब थी। इस वजह से माताजी के साथ हम सभी भाई बहनों को मजदूरी व खेती जैसे कार्य करने पड़े। उस समय हमारे पास सर्सियापालमें बलाई पणा का पुश्तेनी कार्य भी था। जो मेरे बड़े भाई श्रीवीरजी ने सम्भाल रखा था वह कार्य भी किया। जीवन गुजरते के इन्हीं सामान्य स्रोतसे जैसे तैसे गुजारा चलता था।
शिक्षा के प्रति मेरा रूझान शुरूसे ही था। ईस हेतु मेरे बड़े भाई श्रीवीरजी ने मुझे प्रेरणा दी। शिक्षा प्राप्त कर सरकारी नौकरी प्राप्त करने की प्रबल इच्छा मनमें थी। मेरी प्राथमिक शिक्षा मेरे गाँव झाडोल में हुई तत्पश्चात आगे की शिक्षा प्राप्त करने के लिए मैंने उच्च प्राथमिक विद्यालय देवपुरा (सराडा) में प्रवेश लिया। डगर कठिन थीं हौसला बुलंद था इरादे मजबूत थें। इस तरह मैंने मिडिल परीक्षा उत्तीर्ण की। देवपुरा के पास मेरी दो बहने थी जिनका मुझे काफी सहयोग और स्नेह मिला। विकट आर्थिक स्थितियो से कभी-कभी मेरा मन डगमगाने लगता लेकिन मैंने ठान लिया था कि मुझे सरकारी नौकरी ही करनी है। आगे कि पढाई के लिए मुझे अन्यत्र प्रवेश लेना था अतः मैंने उदयपुर में राजकीय विधालय फतह स्कूल में प्रवेश लिया। प्रवेश तो हो गया लेकिन वहां रहने की समस्या थी। आर्थिक हालात ऐसे नहीं थें कि कमरा किराये पर ले सकें। लेकिन कहते है जहां चाह हैं वहां राह हैं। इसी दौरान मुझे राजकीय छात्रावासकी जानकारी मिली, मैंने छात्रावास में प्रवेश लेने के लिए आवेदन किया और मुझे समाज कल्याण के राजकीय छात्रावास प्रतापनगर में प्रवेश मिल गया। और कठिन रास्तोंसे गुजरते हुए हायर सेकेंडरी परीक्षा उत्तीर्ण करली।
हायर सेकेंडरी परीक्षा उत्तीर्ण करने के पश्चात मेरी नियुक्ति अस्थाई रूप से शिक्षक के पद पर हुई शिक्षक के पद पर रहते हुए मैंने अपनी सेवाएँ सराडा एवं सलुंबर पंचायत समिति में दी। इस प्रकार मेरा सरकारी नौकरी करने का सपना सच होता दिखाई दिया। परन्तु कुछ समय पश्चात मुझे एक सरकारी आदेश प्राप्त हुआ जिसमें लिखा था कि स्थाई नियुक्ति हेतु आप प्रशिक्षण प्राप्त करेंगे तो आपकों इस सेवामें रखा जाएगा अन्यथा नहीं। मेरे सामने संकट आ खड़ा हो गया। सरकारी नौकरी करने का सपना फिर टूटता दिखाईं दिया। क्योकि प्रशिक्षण (ट्रेनिंग) प्राप्त करने के लिए मेरे पास पर्याप्त रूपये नहीं थें। और कहीं से वयवस्थाभी नहीं हो पाईं थीं। मजबूरीवश, विपरीत हालातों, व विकट परिस्थिति यो के कारण मुझे शिक्षक जैसा गरिमामय पदको त्यागना पड़ा।
एक बार फिर आर्थिक संकट के कारण वापस उदयपुर जाकर भवन निर्माण एवं अन्य कार्यमें दिहाडी मजदूरी करने लगा। कुछ समय अस्थाई तौरपर विधुत विभागमें विधुत खंभे रोपना, खड्डेखोदना, विधुत खम्भों पर कलर करना नम्बर लिखना जैसे कार्य किये। (केवडा, ओडा, जावर माइन्स क्षेत्र में बिजली के जोभी खंभे लगेहैं वह हमारे हाथोंसे ही हैं।) विधुत विभाग का कार्य पूर्ण होने पर यह रोजगार भी जाता रहा।
इस दौरान मेरी शादी डाल गाँव में श्रीमान मोडाजी बुनकर व श्रीमती पानुबाई की पुत्री रतनदेवीसे हुई। डाल में हीं मेरीबहन भी थीं जिनका समय-समय पर मार्गदर्शन मिलता रहता था। शादी के बाद स्थाई रोजगार की उदेश्य से में अहमदाबाद चला गया। अहमदाबाद में मेरे बन्डोली निवासी बहन का सहयोग मिला। वहाँ भारत सूर्योदय मिलमें नौकरी मिल गई परन्तु वह भी अस्थाई थीं अतः कुछ समय बाद ही पुनःगाँव लोटना पड़ा। बेरोजगारी एवं आर्थिक स्थिति कमजोर होने के कारण काफी परेशान था कही कोई रास्ता नहीं दिख रहा था उसी समय मेरी मुलाकात गाँव में रहने वाले गुणी वैद्यराज श्री प्रीतमसिंह जी से हुई। उन्हों ने मेरी मजबुत कद काठी देख कर मुझे सेनामें जाने हेतु प्रेरित किया। इक्तफाक से उन्ही दिनो सेना में भर्ती चल रही थी और सैन्य विभाग का कार्यालय उदयपुर के अशोक नगर में स्थित था। वेकेन्सी कम थी अभ्यर्थी ज्यादा थे करीब दो सौ लोगों की लाइनथी शारीरिक दक्षता परीक्षण हो रहा था।मै भी उस लाइन में जाकर खड़ा हो गया।
(विवाह के बाद श्री मती रतनदेवी के साथसन्
1965 का छाया चित्र)
मेरी शारीरिक कद काटी, शेक्षिक स्तर व खेल के प्रति मेरी रुचि, शारीरिक सक्रियता सभी प्रकार के परीक्षण में सफल होने के बाद मेरा चयन भारतीय थल सेना में हो गया।
इस प्रकार में 11 अगस्त 1965 में मैं भारतीय थल सेना का अभिन्न अंग बन गया। मेरे गाँव से सेना में जाने वाला मै पहला व्यक्ति था जिस दिन मेरा चयन हुआ उसके अगले ही दिन रक्षा बन्धन का त्यौहार था, मेरी बहने घर पर मेरा इन्तजार कर रही थी परन्तु मेरा सेना में जाने का जनुन में मैं त्यौहार भी भूल गया और घरसूचना भी नही दे पाया। हमे भर्तीस्थल से ही ट्रेनिंग के लिये राडकी (उत्तरपदेश) भेज दिया गया।
(भारतीय थल सेना में भर्ती के दौरान लिया गया छायाचित्र
11 अगस्त 1965)
अशोक नगर स्थित सेना कार्यालय से ही हमें एक कम्बल वरु 2:50 /- (दो रुपये पचास पैसे) रास्ते में खाने के लिये दिये गये। यात्रा के दौरान ही मैने घर पर पत्रलिखकर सूचना दी कि सेनामें भर्ती होकर ट्रेनिगके लिये रुडकी जा रहा है। रक्षाबन्धन पर नहीं आपाऊँगा अतः आप मेरी प्रतिक्षा नहीं करें, सभी बहनो से माफी चाहताहूँ।
यात्रा के पश्चात मैं सैन्य प्रशिक्षण संस्थान रुडकी पहूँचा। हमारी ट्रेनिंग चल रही थी, अभी हमारी ट्रेनिग पूरी भी नहीं हो पाई थी कि ट्रेनिंग के दौरान ही 6 सितम्बर 1965 को भारत पाक युद्ध छिड़ गया। हमारी युनिट को बुलावा आया कि युद्धमें जाना है तैयार रहो। ट्रेनिंग पूरी हुई भी नहीं थी कि हमारी युनिट को सीधा फिल्ड एरिये में तैनात कर दिया। युद्ध चल रहा था इमरजेन्सी लगी हुई थी, कुछ जवान युद्ध से घबराभी रहे थे क्योंकि उस समय देशमें हथियारों की कमी थी पर जोश और जज्बे कमी नही थी। भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री श्री लाल बहादूर शास्त्री भारतीय जवानो की हौसला अफजाई कर रहे थे। हमारी युनिट अग्रिम पंक्ति में खड़ी थीं, दना-दन गोलियाँ चल रही थी, बम के गोले फूट रहे थे हमारी सेनाने डटकर मुकाबला किया। 22 दिनोंतक चलने वालेयुद्ध में भारत के तीन हजार सैनिक और पाकिस्तान के तीन हजार आठसौ सैनिक हताहत हुए, हजारों घायल हुए। पाकिस्तान को मुँह कीखानी प डी (हारमाननीपड़ी) भारतपाक युद्ध में भारतीय सेना का अंग बननामेरे लिये गर्व की बात हैं। सैन्य सर्विसके दौरान मैंने रुडकी, झाँसी, शिवपुरी, दतियाँ, ग्वालियर, इलाहाबाद, मथूरा, सिलीगुढी, वेस्टबंगाल, रामगढ़, नामकुम, राँची, बिहारआदि स्थानों पर सेवाएं दी।
सिलीगुढी (पश्चिमीबंगाल) में पोस्टिंगके दौरान मैं हृदय रोग से ग्रस्त हो गया इस कारण मुझे मेडिकल ग्राउण्ड पर सेना द्वारा सन् 1971 में रिटायरमेन्ट मिला, इस प्रकार देश सेवा के जज्बे केसाथ मैं गाँव आ गया।
(1965 काभारतपाकयुद्धकेछायाचित्र)
पद पर मेरा चयन हो गया। डाक विभाग में प्रशिक्षण के लिय मुझे सहार नपुर (उत्तरप्रदेश) भेजा गया। वहाँ से प्रशिक्षण पूर्ण करने के बाद मुझे देश नोक (बीकानेर) मेंपोस्टमास्टर के पद पर नियुक्ति मिली उसके बाद में सायरा, सलुम्बर, सेमारी, झाडोल, ईण्टालीखेडा, झल्लारा, छाणी, पारसोला, उदयपुरऔर पुनःसलुम्बरआदि स्थानों पर अपनी सेवाएँ दी। 31 मई 2004 को मुख्य डाक घर सलुम्बर से हेड पोस्ट मास्टर के पद से सेवा निवृत हुआ।
(भारतीयडाकविभागमेंसन् 1972 मेंपोस्टमास्टर)
(हेड पोस्टमास्टर सलूम्बर के पद से सेवानिवृति के समय लिए गए छायाचित्र)
जन्मसे लेकर उम्रके उस पड़ाव में सहयोग करने वाले में माँ और भाई बहनों की स्मृतिया हीं शेष हैं। सिर्फ ईसरवास [डांगीयान] निवासी बहन हीं हैं जो इस जीवन संघर्ष की सहयोगी और शाक्षी हैं।
विगत की अपनी कहानी और जीवन जीने के संघर्ष थे वर्तमान की अपनी प्रतिस्पर्धा है। मैं और मेरे जीवन पथ पर हर पल साथ निभाने वाली जीवनसंगिनी श्रीमती रतन देवी अपने बच्चोंके लिए अपनी सामर्थ्य से जो कूछ भी कर पाए उस आधार उनकी अपनी मेहनत और लगन से मेरे पुत्र कैलाश और दोनो पुत्रियां सविता और ललिता शिक्षा विभाग में शिक्षक के रूप में अपनी सेवाएं देर हे है। पुत्रवधू रंजना भी शिक्षिका है। मेरे पोत्र प्रणव और पोत्री भव्या अध्ययनरत है।
वर्तमान में मैं सेक्टर 14 उदयपुर में निवास रत हूँ।मेरा समाज के लिए संदेश हैं...............
"विफलता एक चुनौती है स्वीकार करें संघर्षकरे और आगे बढे।"
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