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पारसमणि त्रितीय एपिसोड

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पारसमणि त्रितीय एपिसोड

An ऑटोबायोग्राफी Of शंकरलालबुनकर

संवत २०७७ नववर्ष का यह प्रथम एपिसोड “महिलासशक्तिकरण – Women एम्पॉवरमेंट” पर केंद्रित हे।

महिला सशक्तिकरण का तात्पर्य महिलाओ के लिए एक ऐसे वातावरण के निर्माण से हे जहा वे अपने परिवार के साथ साथ समाज के लिए भी महत्वपूर्ण किरदार निभा सके। वास्तविक अर्थ में शिक्षा के साथ ही महिला ओको विभिन्नक्षेत्र में अवसर प्रदान कर के उन्हें आत्मनिर्भर बनने के लिए सक्षम बनाना ही सही मनो में “Women एम्पॉवरमेंट” हे।

आज के एपिसोड में हम आपका परिचय आत्मनिर्भर के उदाहरणरूप श्रीमती सुशीला दिलीप सालवी – सलूम्बर से करवाने वाले हे, जिन्हो ने पूर्णिमा सेवा संसथान के माध्यमसे कम सुविधा वाले क्षेत्रमें शिक्षा के विस्तार के लिए "पूर्णिमा पब्लिक स्कूल" की स्थापना की। संसथान के और भी सामाजिक कार्य करते हुए आज पूर्णिमा आसपास के प्रदेश में खूब सम्माननीय नाम बन चूका हे।

तो चलिए मित्रो आज उनसे परिचय करते हे उन्ही के द्वारा शब्दों में पिरोई गयी ऑटो बायोग्राफी।

  • नाम:- श्रीमती सुशीलागेहलोत पत्नी श्री दिलीप गेहलोत
  • जन्मतिथि:- 03.04.1982
  • शिक्षा / योग्यता:- B.Ed, M.A
  • स्थाईनिवासी:- सलूम्बर, जिला-उदयपुर
  • हालमुकाम:- सेक्टर 9, सवीना,
  • उदयपुर - 313002 (राजस्थान)
  • मोबाईलनंबर : 74268 79953

मेरा जन्म उदयपुर जिलेकी सराड़ा तहसील के चावंडगांव में पूजनीय माता चंपादेवी व्पिता श्री ओंकारलालजी सोनार्थी के एक साधारण परिवार में हुआ। मेरे परिवार द्वारा मेरा लालन-पालन बड़े ही नाजो से किया। उस समय मेरे माता पिता उदयपुर में निवासरत थे तथा मेरे पिताजी राजस्थान जनजातिय क्षेत्रीय विकास संघ उदयपुर में पदस्थापित हुए।

लगभग 5 वर्ष की आयु में मुझे सेन्ट्रल एकेडमी अंग्रेजी माध्यम विद्यालय में कक्षा नर्सरीमें प्रवेश दिलवाया गया। मेरी आयु के साथ साथ ही मेरी विद्यालइ शिक्षा भी बढ़ती गई। जब तक में कक्षा 8 में प्रविष्ट हुई तब मुझे अपने परिवार व्समाज के बारेमें कुछ जानने व्समझ ने का अनुभव होने लगा था।

मेरे पिता के परिवार में चार भाई एवं तीन बहने थी। परिवार की आर्थिक स्तिथि काफी कमजोर एवं गरीबी से निचे थी। परिवार में मेरे पिताजीके सब से ज्येष्ठ होने के नाते उन पर परिवार के सभी सदस्यों की पूर्ण जिम्मेदारी थी। मेरे पिताश्री का विवाह ठाणा गांव के श्रीहमीरजी बरोड़ परिवार में हुआ। मेरे नानाजी की पारिवारिक एवं अच्छे संस्कार होने से मेरी माताजी चम्पादेवीने विवाह के पश्चात चांवडमें रहते हुए ससुराल की जिमेदारी बखूबी निभाई।

मेरे पिताजी के तीन भाई क्रमश श्रीशंकरलाल सोनार्थी, श्रीरमेशचंद्र सोनार्थी, श्रीकन्हैयालाल सोनार्थी एवं मेरी भुआ नाथीदेवी, शांतादेवी एवं बसंतीदेवी का उनकी आयु अनुसार विवाह मेरे मातापिता द्वारा कराया गया था। उनके विवाह में सम्पूर्ण आर्थिक व्यव्हार / खर्च मेरे माता-पिता द्वारा ही वहन किया गया।

परिवारमें सबसे जयेष्ठ होने के करना मेरे पिताजी द्वारा ही समाज एवं परिवार में सम्पूर्ण सहयोग किया गया। पिताजी स्वयं सक्षम हुए तथा परिवार के सभी सदस्यो को भी आत्म निर्भर बनाया।

तबतक में भी कक्षा 10वि उत्तीर्ण कर चुकी थी। इसी दौरान मेरे दादाजी श्रीरूपलालजी का स्वर्गवास हो गया तथा में कक्षा 11वी में राजस्थान महिलामंडल विद्यालय, उदयपुर में नियमित छात्रा के रूपमें अध्यायरत थी। कुछ परिस्थिया ऐसी हुई के मेरे कक्षा 11वी में अध्यनरत रहते ही मेरे विवाह का प्रस्ताव सलूम्बर निवासरत श्रीलालूरामजी गहलोत के पुत्र श्रीदिलीपजी गहलोत के लिए आया, तत्समय रिस्ता अनुकूल होने व ग्रह, गोचर के उत्तम होने एवं मिलान होनेसे व्श्रीदिलीपजी गहलोत के सहकारिता विभागमें नौकरी होने के साथ-साथ बड़ा परिवार जिसमे पांचभाई, एक बहिन होने से मेरे परिवारने रिश्तेके लिए अपनी सहमति प्रदान करदी, तथा उसी दौरान दिनांक 9 फरवरी 2000 में मेरा विवाह 17 वर्षकी आयुमें ही संपन्न हो गया। जो आज भी एक दूसरे के सहयोग से सफलता पूर्वक प्रगतिकी और अग्रसर हे।

विवाह के पश्चात्भी मेरा अध्यन नियमित जारी रहा। मेरे पति श्रीदिलीपजी के सहयोग से मेने नियमित अध्यन रत रहते गुरुनानक गर्ल्सकालेज, उदयपुरसे BA स्नातक किया। साथ हीदिनांक 10 जून, 2003 को मेरी प्रथम सुपुत्री सुश्री रिषिका गेहलोत का भी जन्महुआ।

मेरे ससुराल सलूम्बर में श्रीलालूरामजी गहलोत एवं श्रीमति केसरबाई गेहलोत के पांच पुत्र श्रीभवरलाललालजी (जेठ), श्रीशांतिलालजी (जेठ), श्रीरामचंद्रजी (जेठ), श्रीनरेंद्रजी (देवर) एवंनिर्मलादेवी (ननद) का भरा-पूरा परिवार हे।

सन 1985 में मेरे ससुरजी का उदयपुर में होटल व्यवसाय था, परन्तु अशिक्षित एवं निम्नसमाजके होने के कारन उन्हें अपने व्यवसाय में धोखा हुआ और उन्हें अपने व्यवसाय से हाथधोना पड़ा।

मेरे ससुरालकी परिस्थितिया (आर्थिकपरिस्थिति) काफी दयनीयथी परन्तु मेरी सासुजी श्रीमतीकेसरबाई ने विषम परिस्थितिओं में हिम्मत न हारते हुए परिवार की जिम्मेदारी को भली प्रकार संभाला और कठिन मेहनत करके अपने सभी पुत्रोको सक्षम बनाने की भरपूर कोशिश की जिनके कारन वे मेरी प्रेरणा स्त्रोत हे। मेरी सासुजी ने इन विषम परिस्थितियों में अपने गहने तक बेचकर अपने परिवार को सक्षम बनाने की भरशक कोशिश की एवं श्रीभवरलालजी बुनकर के नौकरी में लगने के पश्चात उन्होंने अपने छोटे भइओ को भी अध्यनके पश्चात ट्रेनिंग करवाई एवं सभी छोटे भाईबहिन को सक्षम बनाया। श्रीभवरलालजी बुनकर (जेठजी ) का हमारे परिवारको सक्षम बनाने में महत्वपूर्ण योगदान रहा जिसके कारन आज हमारे परिवारको सम्पूर्ण छप्पन क्षेत्र में जाना जाता हे।

उक्त सम्पूर्ण विषम परिस्थितियों के चलते एवं सघर्षो में भी मैंने मोनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय, उदयपुर से सहपाठी छात्र के रूपमें अपना अध्यन जारी रखा एवं MA सन्नोक्तर डिग्री हांसिल की, तब तक सांसारिक ज्ञानका पूरा अनुभव हो चूका था। इसी समय मेने बीएड शिक्षण मे प्रवेश लिया तथा अहमदाबाद यूनिवर्सिटी, हेमचन्द्रराय इकाई हिम्मतनगर कॉलेज में बीएड पूर्ण की। मेरा बीएड सेक्सन नियमित (रेगुलर) होनेके कारन मुझे वही पर अघिकांश समय व्यतीत करना पड़ा। मेरी बीएड सहयोगी श्रीमती सुमित्रा मारु (सालवी) पत्नी श्रीजगदीश मारु – गांव महुवाड़ा रही। जीवनमें उनका अत्यंत सहयोग रहा। बीएड शिक्षण के समय मुझे अनेक प्रकार के कार्यकर ने व्सीखने का तजुर्बा हुआ। एक वर्षकी ट्रेनिंग के दौरान कई प्रकार की समस्या प्रकट हुई परन्तु मेने उन समस्या ओका बखूबी सामना किया। मुझे हिम्मतनगर (गुजरात) में ट्रेनिंगके दौरान मकान किराये पर लेना पड़ा और में वही पर रही। मेरे मकान मालिक श्रीदलपतजी परमारजो SC वर्ग के थे, वे हिम्मतनगर तहसील के तहसीलदार थे तथा काफी सज्जन व्यक्ति थे। वह पीड़ित परिवार और महिलाओ के सशक्तिकरण अभियान एवं सामाजिक कार्यकर रहे थे। उनके इस अभियानमे में भी उनके साथ सहयोगमे जुड़ गयी। उनके सहयोग से पिछड़े समाजकी महिलाओ की निरक्षरता का ज्ञान हुआ, जो आजकी पीढ़ी उच्चसमाज के स्तर से बहुत ही निचे हे।

बीएड पूर्ण करने के पश्चात्मुझेजो हिम्मतनगर (गुजरात) से शिक्षा मिली एवं मेरे स्वयं द्वारा किये गए सामाजिक कार्य से में स्वयं काफी प्रेरित हुई , फिर मेरे मनमें महिला सशक्तिकरण, समाज सुधार एवं भावी पीढ़ीके लिए कुछ करने के विचार जागृत हुए।

सन 2010 में मेने अपने लक्ष की और प्रथम चरण बढ़ाते हुए तथा उद्देश्योंकी पूर्ति हेतु मेने पूर्णिमा सेवा संस्थान की नींव रखी, जिस के तहत बस्सी गांव में कक्षा नर्सरीसे पाचंवी तक एक विद्यालय का सुभारम्भ किया। उस समय मुझे कई प्रकारकी कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उदाहरण स्वरुप आज भी गाँवो में हमारा समाज भलेही शिक्षित हो रहा हे परन्तु गाँवो मे स्थित उच्चवर्गके समाज का हमारे समाजसे भेदभावपूर्ण रवैया अत्यंत विकराल रूप धारण किये हुए हे, जिसका वर्णन करना कदापि संभव नहीं हे। वर्तमान मे भी गाँवो में छुआ छूतकी भावना प्रचलित हे। इस मानसिकता को समाप्त करने के लिए हमें हमारे परिवार एवं समाज को शिक्षित करना अत्यत आवश्यक हे।

वर्ष 2011 में दिनांक 19 अक्टुम्बर को मेरी दूसरी सुपुत्री सुश्री कनिष्का गहलोत का हमारे परिवार में जन्म हुआ।

मेरा संकल्प हे की अनुसूचित जाती के किसीभी समाज से हो, एक वर्षमें 3 बच्चीओ को मेरी और से निशुल्क शिक्षा दी जार ही हे, जिसमे कक्षा 8 तक निशुल्क स्टेशनरी उपलब्ध कराई जाती हे।

समय के साथ साथ मेने अपनी मेहनत से संस्थान को माध्यमिक स्तर तक क्रमोन्नत करवाया हे। एवं विद्यालयका विस्तार करते हुए अन्य साखा (ब्रांच) जयसमंद, तहसील सराड़ा में भी प्रारम्भ की हे।

वर्तमान में हमारे संस्थान का नाम आसपास के क्षेत्रोमें काफी फैला हुआ हे। मुझे लगभग 10 वर्ष पूर्ण हो चुके हे और में इस दौरान कई समाजोमें अपना समय व्यतीत किया हे तथा सभी समाजो में विचारो को समजा हे।

महिला होने के नाते विशेषतौर पर मेने महिलाओ पर काफी ध्यान दिया हे। मुझे ऐसा आभास हुआ हे की काफी समाजोमें अपनी बेटिओ को अल्प आयुमें ही वैवाहिक बंधनमें बांध दिया जाता हे जिससे बेटिओ को मानसिक एवं शारीरिक रूप से परिपूर्ण नहीं होते हुए भी समाज व्परिवारका बोझ वहन करना पड़ता हे। जो एक महिला वर्ग के लिए काफी दयनीय होकर सोचनीय विषय हे। एक महिला अपनी जीवन सहजतासे नहीं जी पाती हे। सलूम्बर, उदयपुर क्षेत्रके कई ऐसे गांव हे जहा मेरा व्यक्तिगत जुड़ाव हे। वहां की महिलाओ की समस्याओ को जानने एवं उनका निवारण करने की में पूर्णतः कोशिश करती रहती हूँ। विशेष तोर पर गाँवो की करीब 60 प्रतिसत ऐसी महिलाएँ जो अशिक्षित होने एवं कम उम्रमें विवाहित होने के कारण शारीरिक समस्याएं उत्पन्नहो जाती हे, जिनको सही मार्गदर्शन नहीं मिलने से वे शारीरिकरूप से समयपूर्व ही दुर्बल हो जाती हे जिनको में व्यक्तिगत तोरपर जागरूक करने का पूर्ण प्रयास कर रही हूँ। मेने मेरी जिम्मेदारी को बखूबी निभाते हुए अपनी संस्था में लगभग 15 से 20 परिवारको रोज़गार उपलब्ध कराया हे जो मेरे स्वयंके लिए सुखद अनुभूति हे।

में मेरे समाजकी अशिक्षित महिलाओं का मेरी जीवनके मार्फ़त विशेषतौर से ध्यान आकर्षित करती हु की उन सभी महानुभवी बहनो से आग्रह हे की समय दुबारा नहीं आता हे। मनुष्य जीवन सिर्फ एक बार ही मिलता हे। सभी अपने आपको समझे और समाज को उन्नति के पथ पर अग्रसर करने में अपना महत्वपूर्ण सहयोग दे। समाज की धुरी आप स्वयं ही हे, आप हैं तो सब कुछ हे, आप नहीं तो कुछ नहीं।

परिवार
  • स्व श्रीलालूरामजी गहलोत पत्नी श्रीमती केसरबाई (पूर्वपार्षदसलूम्बर)
  • श्री भंवरलालजी (विकासअधिकारी LIC) पत्नी श्रीमती सज्जनदेवी (गृहिणी)
  • श्री शांतिलालजी (अध्यापक) पत्नी श्रीमती मंजूदेवी (अध्यापिका)
  • श्री रामचंद्रजी (पशुधनसहायक, वेटेनरी) पत्नी श्रीमती सवितादेवी (अध्यापिका)
  • श्री नरेंद्रकुमार (व्यवसायी) पत्नी श्रीमती मनीषादेवी (गृहिणी)
  • श्री भीमराजजी (अध्यापक, द्रितीयक्षेणी) पत्नी श्रीमती निर्मलादेवी (गृहिणी) बहिन - बहनोई

डॉ आंबेडकर मेमोरियल वेलफेर सोसाइटी राजस्थान जिला शाखा उदयपुर द्वारा सावित्री बाई ज्योतिबा फुले 186 वी जन्म जयंती उपलक्ष में दी. 03.01.2016 को शिक्षा क्षेत्र में उच्चतम कार्य को सन्मानित करते हुए श्री ओ. पि. बुनकर (अतिरिक्त कलेक्टर, उदयपुर) एवं श्री श्रवण कुमार (महाप्रबंधक, B.S.N.L)

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