Disable Preloader

पारसमणि 5th एपिसोड

  • पारसमणि 5th एपिसोड
  • पारसमणि 5th एपिसोड
  • पारसमणि 5th एपिसोड
Let's Connect
WhatsApp Now

पारसमणि 5th एपिसोड

माननीय समाज जन, सादर प्रणाम।

ट्रस्ट के प्रेरणादाई कार्यक्रम पारसमणि - An Autobiography of Mine के आज के एपिसोड को अत्यंत भावुक एवं कृतज्ञ भाव से प्रकाशित कर रहै है। आज का यह अंक समर्पित है । सालवी (बुनकर) समाज विकास प्ररिषद - छप्पन क्षेत्र के प्रथम अध्यक्ष एवं हम में से कईओ के प्रेरणातीर्थ समान स्वर्गीय श्रीमान जी. एल. सालवी जी - एक सफल बैंक कर्मी के रूप में अपनी जीवनी हमारे समक्ष प्रस्तुत है।

यह एपिसोड अपने आप मे कई मायनों मे अनोखा है, ट्रस्ट के लिए अपनी जीवनी पूर्ण करने के मध्य मे ही असमय बिदाई होने बाद इस जीवनी को श्री गेबीलाल जी की निजी डायरी से प्राप्त किया गया है, उनके पुत्र विवेक जी एवं पुत्री दीपिका जी के सहकार से इस जीवनी को पूर्ण किया गया है। साथ ही इस ऑटोबायोग्राफी को ट्रस्ट की वेबसाइट पर एक ही समय पर प्रसारित किया जा रहा है।

अपने ट्रस्ट के गठन के पहले सन. 2013 -14 के वर्ष में सालवी समाज (बाहरिया - बुनकर) की अहमदाबाद स्तिथ परिवारों की परिचय पुस्तिका प्रकाशित हुई थी, उस परिचय पुस्तिका मुख्य सन्दर्भ / प्रस्तावना भी आप श्री के करकमल से लिखी गई थी। एक मज़बूत आधार स्तम्भ, मार्ग दर्शक एवम शुभ चिंतक के आकस्मिक छोड़ कर जाना एक अपूर्ण क्षति है। ट्रस्ट के सभी समाजसेवी कार्यो के लिए सहायक एवं विकास परिसद के प्रथम अध्यक्ष के रूप मे निसंदेह उनकी सेवाएं अधूरी रह गई।

आज की समयावधि मे स्व. श्री गेबी लाल जी सालवी व स्व. श्री हिमांशू जी सालवी की स्मृति मे क्रिकेट प्रतियोगिता का आयोजन दिनांक 26.12.2021 से 30.12.2021 तक गांव जैताना में रखा गया है। ट्रस्ट भी अपने दाइत्व को निभाते हुए दिवंगत आत्मा को व्यक्ति विशेष पारसमणि के रूप में हार्दिक श्रद्धांजलि अर्पित करता है।

आप सभी समाज बन्धुओ से पारसमणि एवं क्रिकेट प्रतियोगिता के लिए आशीर्वाद एवं सहकार की विनम्र कामना ...

  • नाम : गेबीलाल जगदीशजी सालवी
  • जन्म दी. : 20.08.1957
  • शैक्षणिक योग्यता : BA, MA Previous (अर्थशास्त्र)
  • मूल निवास : गांव जैताना
  • हाल मुकाम : 41, कृष्णा विला, गोकुल विलेज, तितरड़ी, उदयपुर (राज.)

जन्मस्थान: पवित्र सोम सलिला के तट पर स्थित गांव जैताना तहसील सलूम्बर में दिनांक 20 अगस्त 1957 को माता श्रीमती कुरीदेवी की कोख से प्रदुभाव हुआ। पिताश्री जगदीश जी उनके पिताजी रामाजी (मेरे दादा) साधारण गरीब परिवार।

श्री रामाजी के दो पुत्र श्री जगदीश जी एवं श्री गामीराजी (काका)

श्री गामीरा जी के कोई संतान नहीं होने के कारण स्वाभाविक रूप से लाड - प्यार मे में कब पांच वर्ष का हुआ कोई स्मृति नहीं, लेकिन जब समज आई तो दादाजी ऊँगली पकड़ प्राथमिक विद्यालय जैताना में दाखिला करने ले गए।

एक कपडे की थैली जिसमे स्लेट एवं लिखने का बरतन दिलाया, शायद ये चीज़े हमारी तबकी सबसे बड़ी मूलयवान सम्पति रहै होंगे।

परिवार: श्री रामा जी (दादा) गांव के मुतबिर रहै होंगे, तभी उनके कंधो पर पंचायत का पट्टा देखकर लगता था में भी राजकुमार से कम नहीं। दादाजी पंचायत के पट्टेदार जो थे। परिवार की माली हालत बहुत ज्यादा ठीक नहीं रही होगी। दो भाई में दो-तीन बीघा जमीन, दादाजी रोज बुनाई का कार्य करते थे। जैसे तैसे आजीविका चलती होगी।

राजकुमार होने का भरम तब टुटा जब दादाजी को गांव में रात्रि को गांव के किन्ही कामो के लिए टेर लगते हुए सुना, तब दादा जी ने समझाया की यही हमारी नियति है। इस काम के एवज मे हम फसल पकने पर अनाज एवं गांव मे सवर्ण के मोके अवसर पर खाना मिलता है। मेरे बाल मन मे तभी यही सवाल कोंधा होगा की क्या मुझे भी यह कार्य करना पड़ेगा ?

नहीं नहीं ........ इससे अच्छा तो दादाजी का तन्मयता से रेजना बुनना अच्छा लगता था।

रुई से चरखे द्वारा धागा बनाना, धागे से आगे की प्रक्रिया करते करते कपडा (रेजना) बनाने तक घर के सभी लोग ऐसी तल्लीनता से लगे रहते।

स्कूल में प्राथमिक शिक्षा के दौरान कभी आगे बिठाया हो येतो याद नहीं लेकिन हाँ स्कूल का चपरासी हमें पानी ऊपर से पिलाया करता था, यह भेदभाव अंदर एक चिंगारी सुलगाने के लिए काफी था की हमें अन्य के मुकाबले कमतर समझा जा रहा था।

इसी कारण छुआछूत, अस्पृस्यता, निन्मता आदि के विर्रुध मन में आक्रोश पैदा होता गया। जैसे तैसे प्राथमिक शिक्षा गांव में ही पूरी कर ली। मेरे पिताजी उस समय कक्षा 2 या ३ तक पढ़े हुए थे और उस समय के शिक्षित महानुभाव के संपर्क मे रहते थे और शिक्षा का महत्त्व जान गए और मुझे आगे पढ़ने के लिए उच्चतर प्राथमिक स्कूल आसपुर ले गए (जो गांव से चार किलोमीटर दूर है) और दाखिला करवा दिया, अतः शिक्षा की राह बहुत ही कठिन थी।

एक जोड़ी स्कूल ड्रेस, पैर के जूते नसीब नहीं थे, ऊपर से बस्ते का बोझ और एक दो वर्ष सूखे (अकाल) की विभीषिका के कारण ठीक से खाना भी नहीं। सर्दी, गर्मी, बरसात आसपुर मे चार किलोमीटर पैदल आना जाना लेकिन पढाई का महत्त्व समज आने से ये समस्याए गौण थी। उच्च प्राथमिक विद्यालय आसपुर में गुरुजनो का आशीर्वाद एवं अपनी पढाई की लगन के कारण उन कठिन परिस्थितियों मे भी हिम्मत नहीं हारी और कक्षा आठ उर्तीर्ण कर आगे की राह ली। गांव जैताना एवं आसपुर के बाद सेकंडरी स्कूल सलूम्बर।

तब तक मुझे और मेरे पिताजी को शिक्षा का महत्त्व समझ आने लगा था, वह मुझे उदयपुर भेजना चाहते थे, लेकिन परिस्थिति ओ ने साथ नहीं दिया और मुझे सलूम्बर सेकेंडरी स्कूल में दाखिला लेना पड़ा। परिवार की माली हालत ठीक नहीं होने के कारण सलूम्बर में समाज कल्याण विभाग के छात्रावास मे रहना पड़ा। यधपि विद्यालय मे तो कोई भी समस्या नहीं हुई, लेकिन विडंबना भी तो देखिये के छात्रावास SC - ST था फिर भी ST छात्र हमसे भेदभाव करते थे।

छुआछूत का तंज़ भी झेला लेकिन हिम्मत नहीं हारी और हायर सेकेंडरी शिक्षा पूर्ण की। अपने ही समाज के एक साथी को पीटते हुए भी देखा वह खाना लेने रसोई में चला गया था। यहाँ में यह उल्लेख करना चाहूंगा की अन्य जाती के लोग हमें जो नीचा समझते थे उनके गाल पर तमाचा मारने का एक ही तरीका समझ मे आ रहा था की आगे शिक्षा को जारी रखना और काम से काम रखना, इतना काबिल बनना की उनके सामने रुक कर बात कर सके।

छुआछूत भेदभाव के विर्रुध शुरुआत हमारे गांव के कुए से सर्व समाज के बिच मे पानी भरने से लेकर की थी। गांव के लोग कुए से हमारे समाज के लोगो को पानी भरने देने में आनाकानि करते थे, हार नहीं मान कर वही पानी भरने की ठानी और सफल भी हुआ। गरीबी में पढाई जारी रखना और ऊपर से सामाजिक तिरस्कार, फिर भी संघर्ष जारी रखते हुए विद्या-अध्यन पूरा किया। हमारी उम्र के जिन साथिओ ने यह सब देखा है ।

विपरीत परिस्थिति मे हमने अपने आप को मज़बूत ही बनाया था। क्योकि छात्रवास मे हमें रसोई घर में प्रवेश नहीं देकर अपनी थाली कटोरी में खाना देना और इच्छा होती की छात्रावास छोड़ कर घर भाग जाये, लेकिन फिर पिताजी जी आशाओं ओर सपनो का आभास होने लगता की वे मुझसे क्या क्या उम्मीद लेकर बैठे थे की बेटा पढ़लिख कर होशियार होगा और जीवन मे एकदिन सम्मान से जीने लायक बन जायेगा। क्योकि अबतक समाज के कई पढ़े लिखे नोजवानो के संपर्क में आ चुके थे।

जैसे के श्री विष्णुकुमार जी सलूम्बर, श्री छबिलाल जी कल्याणपुर, किशनलाल जी देवपुरा, श्री विमलप्रकाश जी सलूम्बर आदि। और वे तो यहाँ तक कहा करते थे की हमारे समाज में श्री नरेंद्र कुमार जी वर्मा कलेक्टर बने हुए है तो हम पीछे कैसे रह सकते है।

कक्षा 9 उत्तीर्ण हो गई आसानीसे क्योकि विषय कला वर्ग के लिए थे। हिंदी, इतिहास, भूगोल और कलावर्ग मे जाने के पीछे भी एक दुर्घटना थी की जब गांव से सलूम्बर नोवी कक्षा मे एड्मिसन लेने बस स्टैंड जैताना पर पिताजी के साथ बैठा था तब अम्लोदा के जयचंद जैन ने पूछा की क्या सब्जेक्ट ले रहा है तो मेने कहा की साइंस। और उस जयचंद ने डराया की साइंस मेथ्स तुम नहीं कर पाओगे क्यों की एक एक सवाल आठ आठ घंटो में भी हल नहीं होता है, फिर क्या था मेरे मन के भय से पिताजी का भय अधिक गंभीर था की बेटा फेल हो जाओगे तो में आगे नहीं पढ़ा पाउँगा।

पता नहीं के साइंस लेना ठीक होता या नहीं लेकिन वो तो “जयचंद” ही था जिसने हमारा मनोबल तोड़ कर हमारी निम्नता का आभास कर दिया था। खेर कलावर्ग मे सेकेंडरी स्कूल परीक्षा परिणाम जानने के लिए तब सलूम्बर का एक सिंधी उदयपुर से अखबार लाकर कुछ 25 पैसे लेकर रिजल्ट बताता था और मुझे याद है की किसी तरह वे पच्चीस पैसे जुटाकर मेने अखबार में अपने रोल नंबर उत्तीर्ण वाले कॉलम में देखे थे। मेरे पिताजी उस समय खुश रहै होंगे तब जब की दसवीं बोर्ड पास करली थी।

उसी विद्यालय में हायर सेकेंडरी तो आसानी से हो गई, अब बारी आई आगे बढ़ने की - कॉलेज के शिक्षा के नाम पर मन कौतुहल एक कहावत सुनी थी "नो नॉलेज विथाउट कॉलेज " और उसे पूर्ण करने माता पिता का आशीर्वाद लेकर उदयपुर के लिए कूच किया। उस समय उदयपुर हमारे लिए विदेश जाने जैसा था। जानकारी मिली की समाज के श्री भगवानलाल पंचोली, श्री शंकरलाल जी डोडिया आदि उदयपुर के विद्या भवन रूरल इंस्टिट्यूट में एक वर्ष पूर्व ही भर्ती होकर पढाई कर रहै थे। वहाँ सबसे बड़ी सुविधा आवासीय हॉस्टल की थी। उसी केम्पस में हॉस्टल एवं कॉलेज इतनी अच्छी सुविधा तो कही नहीं मिल सकती थी। जैसे तैसे कुछ राशि की व्यवस्था कर के पिताजी ले चले उदयपुर। कॉलेज में भर्ती कर दिया और साथ ही हॉस्टल मे भी। और सपनो के पंख लगाकर हमारे कॉलेज का सफर प्रारम्भ हो गया।

बात है सन. 1972 की भयंकर बारिश अतिवृष्टि से चारो तरफ जल भराव वाली स्तिथि हो चुकी थी। उसी समय कॉलेज से आदेश मिला की छात्रवृति की पात्रता हैतु आय प्रमाणपत्र लाना आवश्यक है अन्यथा हॉस्टल की सुविधा भी समाप्त हो जाएगी। घबरायें हुए से हम दो साथी (भबराना के श्री बंसीलाल जी गर्ग) सलूम्बर के लिए रवाना हुए लेकिन यह क्या बिच में जयसमंद ओवरफ्लो, खैराड़ पुल टूट चूका था, अब गांव कैसे जाये ? १७ - १८ वर्ष के हम दो युवक, दोनों ने एक दूसरे के सामने देखा, अनिश्चय की स्तिथि मे थे की मालूम पड़ा की जयसमंद मच्छी कांटा से नाव मिलेगी जो जयसमंद पार करके कही चिबोडा, खैराड़ साइड में उतारेगी और वहां से पैदल चल कर खैराड़ पहुंचेंगे और फिर दूसरे छोर पर सलूम्बर के लिए बस मिलेंगी। अनचाहै भय से ह्रदय धक् धक् करते हुए भी उस लकडीकी छोटी नाँव में बैठे 8 - 10 व्यक्तिओ के बिच में हम दो बच्चे।

रोमांचित करने वाला वह 1 - 2 किमी का सफर कुछ कुछ याद है हमारी नॉव बड़े बड़े पेड़ो की टहनियों के ऊपर से गुजर रही थी, पानी का स्तर 25 से 30 फ़ीट रहा होगा। नाँव में एक पगड़ी वाले एक बुज़ुर्ग जो अनहोनी की आशंका मे बार बार ईश्वर का स्मरण कर रहै थे। हम दोनों भयभीत होकर मन मे अपने अपने भगवान् को ही याद कर रहै थे। जैसे तैसे हम किनारे पहुंचे।

मिडल स्कूल मे एक गाना सीखा था एक जीवन का सन्देश मिला था……..

"त्याग और प्रेम के पथ पर चलकर दरिया की छाती पर था तूने होश संभाला लहरों की थपकी से सोया तुफानो ने पाला"

किनारे पर पहुंचने के बाद तो ऐसे उत्साहित थे की जैसे जयसमंद तैर कर पार किया हो। वाकया सुनकर घर वाले बहुत ही चिंतित हुए, एकलौता पुत्र होने पर स्नेह की बेड़ियों ने अपना रंग दिखाना प्रारम्भ किया और वे ऐसी मुसीबतो मे मुझे अपनी नजरो से दूर नहीं होने देना चाहते। नाते - रिस्तेदारो ने भी मनोबल तोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ी की एक लड़का खेती बाड़ी में कुछ नहीं काम धंधा भी कुछ नहीं ऊपर से लड़के के पढ़ने का खर्च कहासे आएगा, इस उम्र मे तो लड़के अहमदाबाद में काम कर परिवार का सम्बल बने हुए थे।

आशाये धूमिल होती नज़र आयी लेकिन जैसे तैसे माँ को समझाया, पिताजी तो मेरी पढाई के लिए बेचेंन तो थे ही, फिर क्या था, आय प्रमाणपत्र सलूम्बर तहसील से बनवा कर पुनः उदयपुर पहुँच गया। कॉलेज में दोस्तों के सहयोग, गुरुजनो के स्नेह आशीर्वाद से प्रथम वर्ष एवं द्रितीय वर्ष आराम से निकल गया। और एक बार फिर अध्यन जारी रखने पर प्रश्न चिन्ह - कारण वही परिवार की आर्थिक हालत ने पैरो फिर बेड़िया डाली, अबकी बार पिताजी ने हिम्मत हारी, कहा बेटा कुछ काम धंधा करो में आगे नहीं पढ़ा सकता हुँ।

सीधे आसमान से धरती पर आ गिरने की स्तिथि प्रगति की राहें समाप्त। ...... होने को। ....... कहीं कोई आशा नहीं।

पिताजी को कहा किसी तरह 200 रुपयों की व्यवस्था कर दीजिये, आगे में कॉलेज मे मिलने वाली छात्रवृति से चला लूंगा, लेकिन पिताजी मज़बूर थे। जैसे तैसे हिम्मत बटोर कर गांव के एक महाजन जो मेरी पढाई से प्रभावित थे, उनके पास गया और हाथ जोड़ कर निवेदन किया की पिताजी ने आगे पढ़ने से साफ़ मना कर दिया है, और में बिच में पढाई छोड़ता तो न घर का न घाट का, खेती करना आता नहीं, अहमदाबाद की मज़दूरी रास नहीं, विचित्र स्तिथि है। उन सज्जन श्री जवेरचंद्र जैन का लाख लाख सुक्रिया की उन्हों ने 200 रुपयों की मदद की।

जैसे की जीने का सहारा मिल गया। दो सो रुपये लेकर ख़ुशी ख़ुशी घर गया, माँ को कहा में नदी में स्नान कर के आता हूँ खाना बना देना में उदयपुर जा रहा हूँ। उत्साहित होकर नहाने चल दिए आकर खाना खाया और कपडे पहनने लगा, शर्ट की ऊपर की जेब में हाथ डाला तो 200 रुपये गायब, ये क्या? माँ को पूछा, मना करने पर पिताजी से पूछने की हिम्मत नहीं हुई, उनके पास चुप चाप आकर खड़ा हो गया।........ पिताजी की आँखों मे आंसू, बोले बेटा इन दो सो रुपयों से कुछ नहीं होगा और भूखे मरने की नौबत आ जाएगी, क्या करेगा?

समझ में आ गया आने वाली मुसीबतो को भांप कर रूपये जेब से पिताजी ने ही निकाल लिए थे। पिताजी कठिन से कठिन हालातो मे भी हिम्मत नहीं हार ने वाले थे लेकिन अनचाहै भय से उनकी हिम्मत भी पस्त होने लगी थी की उदयपुर में बच्चा कही कोई बड़ी मुसीबत मे न पड़ जाये।

जैसे तैसे पिताजी को मनाया की अब नाँव मजधार मे है, पीछे मुड़कर नहीं देख सकता, आगे बढ़ने के आलावा कोई रास्ता नहीं। वे दो सो रुपये लेकर उदयपुर आ गया। बिना किसी को बताये पढाई में लग गया और स्नातक (BA) तीसरा वर्ष पूर्ण कर लिया।

इस तरह विद्याभवन रूरल इंस्टिट्यूट जहाँपर अध्ययन कर मैने अपने भविष्य को सवारने की नीव रखी, अपनी स्नातक पूर्ण कर MA हैतु उदयपुर के MB College के न्यू केम्पस में MA अर्थशास्त्र हैतु प्रवेश लिया एवं नेहरू छात्रावास को अपना आवास बनाया। ग्रेडुएशन पूर्ण करने तक अब सपनो के पंख लगना शुरू हो गए थे। MA अर्थशास्त्र करूँगा, PHD करूँगा या RAS की तैयारी करूँगा या IAS के बारे में भी विचार आया। इन्ही विचारो के बिच मित्र श्री रघुनाथ जी से नेहरू हॉस्टल में भेंट परिचय हुआ और उनकी सलाह से MA पूर्ण करने का मानस बना लिया। नियमित पैदल नेहरू हॉस्टल से न्यू केम्पस 3 KM का सफर । हमारी विडम्बना की एक साईकिल की व्यवस्था भी नहीं हो सकती थी। फिर भी लक्ष्य की तरफ आगे बढ़ने का प्रयत्न किया।

तब भी बेरोज़गारी की समस्या तो थी ही और ग्रेजुएशन के बाद एक एक सभी साथी कही न कही छोटा मोटा जॉब ढूंढ कर चले गए। में अकेला रह गया , फिर वही घर की माली हालत देखकर महसूस हुआ की MA करना कोई लाभ का सौदा नहीं। कही न कही रोजगार प्राथमिकता होनी चाहिए और तब रोजगार समाचार पढ़ना प्रारम्भ किया, बेंको की कई वैकेंसिस निकली और स्टेट बैंक ऑफ़ बीकानेर एन्ड जयपुर के क्लेरिकल ग्रेड के लिए एप्लाई कर दिया। अप्लाई करते ही “राजस निगम” समित सहायक के पद के लिए के साक्षात्कार का लेटर आ गया इंटरव्यू दिया और उसमे सफल हो गया और तुरंत सलूम्बर में जोइनिंग भी दे दी।

एक माह नौकरी की लेकिन यह लगने लगा की अपनी योग्यता का सही उपयोग नहीं होगा ये विचार कर के त्यागपत्र दे दिया।

बैंक मे एप्लाई किया ही था, मन लगाकर उसकी तैयारी में लगा रहा। एक दिन परीक्षा हुई और लगभग दो माह के बाद नेहरू हॉस्टल में ही अंदाज़ से पोस्टमेन मिठाई की मांग करता हुआ आया था। उसके हाथ मे अपॉइंटमेंट लेटर का लिफाफा था। में उछल पड़ा था प्रथम प्रयास में ही बैंक में नौकरी। यधपि MA कम्प्लीट न कर पाने का मलाल जरूर था। मगर साथिओ की सलाह थी की जो मिला है उसे हाथ से न जाने दो और फिर घरवालों के तो जैसे पंख लग गए, बेटे की नौकरी बैंक में जो लगी थी।

"कठोर परिश्रम का कोई प्रति स्थापन नहीं होता।"

इस तरह पढाई छूट ने के भय और रोज़गार मिलने की ख़ुशी में राजसमंद में प्रथम नियुक्ति पर रिपोर्टिंग कर दी। इस तरह जीवन की प्रथम सीढ़ी पर पैर रख दिया।

इसी बिच मेरे परम मित्र रघुनाथ जी जिंगर एवं निकट के पारिवारिक सदस्य श्री विष्णु कुमार वरनोति बोलें कि पढ़ाई पूरी हो चुकी हैं और नोकरी लग जायेगी एक रिश्ता अच्छा है तो समय पर तय कर देते है। वे उदयपुर भूपालपुरा श्रीमान शिवकिशोर जी आर्य की पुत्री के साथ शादी का प्रस्ताव लेकर गए।

18-06-79, के दिन एक ऐतिहासिक प्रसंग का जिक्र करना जरुरी है की जिस गांव के कुँए से बचपन मे पानी तक भरने से रोका जाता था उसी गांव जैताना से मेरी शादी मे गांव के सभी वर्ग के महानुभाव खूब उत्साह से शामिल हुए एवं उदयपुर बारात मे पधार कर हम नवविवाहित जोड़े को आशीर्वाद दिए।

यहाँ पर बहुत ही प्रासंगिक है की शिक्षा से ही हम समाज में उचित स्थान बना सकते है।

समय के साथ आज बहुत कुछ बदल चूका है, हमने जो देखा, भुगता, पग पग पर तिरस्कार देखा, हमारे बच्चे एवं हमारी आने वाली पीढ़िया नहीं देखेगी।

"में चलता गया रस्ते मिलते गए। राह के कांटे फूल बनकर खिलते गए। ये जादू नहीं, आशीर्वाद है मेरे अपनों का वार्ना उसी राह पर लाखो फिसलते गए।"

  • सन. 1978 - चार वर्ष राजसमंद कृषि विकास शाखा मे कार्यरत रहै जहां कृषि हैतु उत्पादक एवं मियादी ऋण दिए जाते थे।
  • सन. 1982 – सलूम्बर: 10 वर्ष का कार्यकाल
  • JMGS – I (Junior Management Grade Scale I) कनिष्ठ प्रबंधन वर्ग - प्रथम
  • सन. 1991 - राजसमंद फिल्ड ऑफिसर के पद पर कार्य किया। कृषि ऋण एवं वसूली मुख्य कार्य।
  • सन. 1992 - थमला शाखा प्रबंधक।
  • सन. 1993 - इंटली खेड़ा शाखा प्रबंधक।
MMGS – II (Middle Management Grade Scale II) वरिष्ठ प्रबंधन वर्ग - द्रितीय

सन. 1996 - भबराना शाखा प्रबंधक। (लगातार चार ऑडिट में सर्व श्रेष्ठ परिणाम दिए, अनेक गरीब किसानो को भरपूर सहयोग दिया, साथ ही डूबता ऋण की वसूली भी की। )

सन. 2001 - सलूम्बर उपप्रबंधक (चुकी क्लेरिकल ग्रेड मे लगातार 10 वर्ष सलूम्बर मुख्य शाखा पर कार्य किया था, अतः एकबार और पदोन्नति पर शाखा में पूर्व परिचित ग्राहकों को बहुत ख़ुशी हुई और ग्राहक सेवा के नए आयाम स्थापित किये। सलूम्बर शाखा में स्टाफ एवं कस्टमर सभी चहिते बनकर रहै।)

  • सन. 2003 - हिरन मगरी सेक्टर 4 उदयपुर (उप प्रबंधक)
  • सन. 2005 - रासमेक - ऋण विभाग में कार्य किया, क्रेडिट का अनुभव प्राप्त हुआ।
  • MNGS – III (Middle Management Grade Scale III) वरिष्ठ प्रबंधन तृतीय वर्ग
(यहाँ यह लिखते हुए उपयुक्त होगा की, संविधान पदत आरक्षण के लाभ से ही बैंक में SCALE III मे पदोन्नति हो गई)

सन. 2008 - मुंबई अँधेरी (पूर्व) शाखा (शाखा प्रबंधक)

मेट्रो सिटी मुंबई मे पोस्टिंग मिली, अबतक छोटे छोटे गावों में कार्यार्थ रहै लेकिन एक दिन इसके उलट मेट्रो सिटी में पदस्थापन से एक बार गभराहट होना वाजिब था प्रथम छः माह तो असमंजस में ही निकले। छः माह बाद अपने आप को स्थापित किया, कार्य का भरपूर आनंद लेते हुए तीन वर्ष के कार्यकाल में शाखा के व्यवसाय को दोगुना कर दिया और बेस्ट रिजल्ट दिया। अपने कार्यकाल में बैंक के प्रबंधन निर्देशक एवं महा प्रबंधक द्वारा शाखा की विजिटकरवाकर प्रसंशा प्राप्त की। यदि यह कहै की अबतक का बैंक का श्रेष्ठ कार्यकाल रहा। तीन वर्ष का श्रेष्ठ कार्य समाप्त कर पुनः उदयपुर स्थानांतरण।

"समस्या से पर पाने में ही मनुष्य निखर जाता है।"

सन. 2011 - शास्री सर्कल शाखा उदयपुर (प्रबंधक शाखा परिचालन) सामान्य बैंकिंग क्रिया कलापो के अतिरिक्त एक फ्रॉड के मामले को अपनी कुशलता से निपटाकर तीन कर्मचारीओ को बचाया। यहाँ भी मेहनत रंग लाई और बैंक वरिष्ठ प्रबंधक वर्ग IV मे पदोन्नति देकर जोधपुर ट्रांसफर मिला।

सन. 2012 - जोधपुर (अग्रिम मुख्य प्रबंधक)जोधपुर में रहकर नागौर जिले की 40 - 45 शाखा ओ का नियंत्रण हमारे हाथो मे रहा जिसका बखूबी संचालन किया। जोधपुर से नागौर में ट्रांसफर।

सन. 2015 - नागौर (मुख्य प्रबंधक) नागौर में RO की स्थापना की। नागौर से पुनः उदयपुर ऋण विभाग में बैंक में कार्य करने का अवसर मिला।

सन. 2016 - रास मेक उदयपुर

सन. 2017 - दिनांक 01. 04. 2017 से हमारा बैंक SBBJ, SBI में मर्ज होगया। तब पटेल सर्किल स्थित प्रसाशनिक कार्यालय में नियुक्ति के साथ अगस्त 2017 में सेवा निवृत हुए।

"जिंदगी के रंग मंच पर अपना किरदार इस सिद्दत से निभाए की पर्दा गिर ने के बाद भी तालियां बजती रहें।"
39 वर्ष 4 माह 21 दिन के गौरवमई, बेदाग़, निष्कलंक सेवा समाप्त कर बैंक से सेवा निवृत।

समाज केलिए सन्देश: कठोर परिश्रम का कोई प्रतिस्थापन नहीं होता, सफलता निश्चित रूप से कदम चूमती है।

धन्यवाद एवं कर बद्ध प्रेम प्रणाम।
(जी. एल. सालवी)
रिटायर्ड मुख्य प्रबंधक SBBJ / SBI
एवं अध्यक्ष श्री, सालवी (बुनकर) समाज विकास प्ररिषद - छप्पन क्षेत्र
  • परिवार / परिचय :
  • पत्नी : विना
  • पुत्र - पुत्र वधु : विवेक सुशीला
  • पुत्र - पुत्र वधु : हिमांशु ज्योति
  • पुत्री - जमाई सा : दीपिका सुशिल जी
  • पौत्री : मनस्वी, प्रांजल (पीहू)
  • पौत्र : मंथन, शिवांश

Subscribe for our News Letter

Subscribe for our News Letter keep in touch with farming industry. Your Information is safe with us. We also hate spam as you.